Old Coins Bazaar

खाली बैठी पत्नी अब नहीं मांग सकती पति से पूरा भरण-पोषण, हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

 हाईकोर्ट ने तलाक के एक केस में अहम टिप्पणी करते हुए ये कहा है एक पत्नी जो पहले नौकरी करती थी अब वह खाली बैठकर भरण पोषण नहीं मांग सकती है... आइए नीचे खबर में जाने इस फैसले को विस्तार से। 
 | 
v
Agro Haryana, Digital Desk,New Delhi  कर्नाटक हाईकोर्ट ने तलाक के एक केस में टिप्पणी करते हुए कहा कि एक पत्नी, जो पहले नौकरी करती थी, वह अब बेकार नहीं बैठ सकती और न ही अलग हो रहे पति से पूरा भरण-पोषण मांग सकती है। बल्कि उसे अपने जीवन चलाने के लिए भी कुछ कोशिशें करनी चाहिए।

जस्टिस राजेंद्र बदामीकर की बेंच ने महिला की भरण-पोषण और मुआवजे की राशि में कटौती के सेशन कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।

हाईकोर्ट ने कहा- शादी से पहले काम करती थी तो अब क्यों नहीं-
हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच उस केस पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सेशन कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें महिला को दिए जाने वाले गुजारा-भत्ते को 10 हजार से घटाकर 5 हजार और मुआवजे को 3 लाख से 2 लाख कर दिया गया था।

जस्टिस बादामीकर ने कहा कि महिला अपनी शादी से पहले काम कर रही थी, और उसने इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया कि वह अब काम क्यों नहीं कर सकती है।

महिला पति से केवल सपोर्टिव मेन्टेन्स मांग सकती है-

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि महिला को बेकार बैठकर अपने पति से पूरा गुजारा भत्ता नहीं मांगना चाहिए। वह अपना जीवन यापन के लिए काम करने कानूनी रूप से बंधी हुई। इसलिए वह अपने पति से केवल सपोर्टिव मेन्टेन्स ही मांग सकती है। इससे पहले महिला ने अपनी याचिका में कहा था कि उसे मिलने वाला मेन्टेनेन्स काफी नहीं है। सेशन कोर्ट ने भी बिना जांच किए उसे कम कर दिया है।

कोर्ट ने बच्चे के खर्चाें में नहीं की कटौती-

हाईकोर्ट ने कहा कि अपीलेट कोर्ट ने बच्चे को गुजारा भत्ता देने के आदेश की पुष्टि की है। केवल पत्नी का गुजारा भत्ता किया है। कोर्ट ने यह भी बताया कि महिला अपनी सास और कुंवारी ननद के साथ नहीं रहना चाहती थी। लेकिन उसका पति जो प्रोविजन स्टोर चलाता है, उस पर अपनी मां और बहन की जिम्मेदारी भी थी।

कोर्ट ने कहा- इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं है कि किस आधार पर मुआवजा तय किया गया था। न ही इसे चुनौती दी गई। इसलिए आदेश में हस्तक्षेप करने का सवाल ही नहीं उठता। महिला की याचिका खारिज की जाती है।