Property Transfer : परिवार की सहमति से प्रॉपर्टी ट्रांसफर में अब इन लोगों को मिलेगा इतना हक, कोर्ट ने जारी किए नए नियम
Property Transfer : प्रॉपर्टी का विवाद बहुत भारी होता है। हर घर-परिवार में प्रॉपर्टी को लेकर कोई न कोई मामला सामने जरुर आता ही है। आज हम आपको अपनी इस खबर में परिवार की सहमति से प्रॉपर्टी ट्रांसफर होने पर किसे कितना हक मिलेगा ये बताने जा रहे है तो चलिए आइए जाने नीचे खबर में कि आखिर इस पर क्या कहता है कानून...

Old Coin Bazaar, Digital Desk, नई दिल्ली: जमीन-जायदाद और प्रॉपर्टी (property) का विवाद बहुत भारी होता है. बुद्धि और ठंडे दिमाग से न सुलझाएं तो खून-खराबा तक की नौबत आ जाती है. आपराधिक मामलों में अधिकांश केसे ऐसे होते हैं जो संपत्ति विवाद और रंजिश में अंजाम दिए जाते हैं.
अमूमन हर घर-परिवार में ऐसा कोई न कोई मामला सामने आता है. इससे बचने का एक ही उपाय है कि संपत्ति से जुड़े अपने अधिकार जानें और कहीं विवाद की स्थिति पनप रही हो तो जानकार से सलाह लेकर अगला कदम उठाएं.
एक कॉमन मामला होता है कि पिता की मृत्यु के बाद बेटे को तो संपत्ति में अधिकार मिलता है, लेकिन बेटियों का क्या. इस मामले को एक साधारण से उदाहरण से समझ लेते हैं.
विभूति नाम के एक शख्स हैं जिनके दादाजी ने 1975 में जमीन की एक प्लॉट खरीदी. 1981 में दादाजी चल बसे और उनके परिवार में एक बेटे और 5 बेटियां रह गईं.
दादाजी के देहांत के बाद जमीन का कागजात कानूनी रूप से विभूति के पिताजी के नाम हो गया. कागज नाम करने में पूरे परिवार की सहमति रही. यहां तक कि विभूति के चाचा आदि भी इस पर सहमत रहे.
2018 में विभूति के पिताजी का भी देहांत हो गया. इसके बाद विभूति ने अपने एक भाई और तीन बहनों की सहमति से प्रॉपर्टी का डॉक्यूमेंट मां के नाम करा दिया.
मां के नाम यह प्रॉपर्टी 1981 से 2021 तक ट्रांसफर हुई. अब विभूति के पिताजी की बहनें (बुआ) कोर्ट में अर्जी लगा चुकी हैं कि उन्हें दादाजी की खरीदी प्रॉपर्टी में हिस्सा चाहिए. ऐसी स्थिति में विभूति को क्या करना चाहिए?
क्या है मामला-
विभूति की शिकायतों से पता चलता है कि उनके दादाजी के सिर्फ एक बेटे और पांच बेटियां थीं. फिर उस एक बेटे (विभूति के पिताजी) से दो बेटे और तीन बेटियां थीं.
इसके अलावा विभूति के पिताजी को पांच बहनें भी थीं. इस तरह विभूति को एक भाई, तीन बहनें और पांच बुआ थीं. सभी बुआ की शादी हो चुकी हैं लेकिन शादी के बाद उन्होंने प्रॉपर्टी के लिए सिविल केस दायर किया है.
इन्हें अपने पिताजी (विभूति के दादाजी) की प्रॉपर्टी में शेयर चाहिए जो प्रॉपर्टी उनके भाई (विभूति के पिताजी) के नाम थी. बाद में यही प्रॉपर्टी विभूति के नाम हो गई थी. अभी यह प्रॉपर्टी पूरी तरह से विभूति की मां के नाम है
क्योंकि कानूनी तौर पर उसका कागज बन चुका है. सैद्धांतिक तौर पर प्रॉपर्टी के कागज पर मां का नाम 2018 में ही जुड़ा है न कि 1981 में उनके नाम का कोई जिक्र है जब विभूति के दादाजी ने जमीन खरीदी थी.
किसका होगा हक-
ऐसी स्थिति में बहनें या विभूति की बुआ जमीन पर अपना दावा नहीं ठोक सकतीं. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि विभूति के मां के नाम प्रॉपर्टी का कागज तभी बना होगा जब परिवार के सभी लोग उनके नाम पर सहमत हुए होंगे.
‘नो ऑब्जेक्शन’ की सहमति मिलने के बाद ही कागज पर दस्तखत किया गया होगा. उस वक्त परिवार के अन्य सदस्यों ने भी अपनी बात रखी होगी.
इससे पहले ध्यान दें तो दादाजी की मृत्यु के बाद बहनों की सहमति पर ही विभूति के पिताजी के नाम जमीन का कागज बना.
फिर यही प्रॉपर्टी विभूति के पिताजी के मरने के बाद परिवार के सभी सदस्यों की सहमति से मां के नाम हुई. ऐसे में बहनों का दावा नहीं ठहर सकता.
हालांकि अगर बहनों को लगता है कि उनकी बात सुनी जानी चाहिे तो वे अपनी कानूनी अधिकार के लिए कोर्ट का रुख कर सकती हैं.